बस्तर दशहरा 2025: डेरी गड़ाई रस्म संपन्न, मां दन्तेश्वरी के रथ निर्माण की शुरुआत
जगदलपुर, छत्तीसगढ़ | जुलाई 2025
छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व की दूसरी प्रमुख रस्म 'डेरी गड़ाई' पूरे धार्मिक उत्साह और पारंपरिक विधि-विधान के साथ की गई। यह रस्म बस्तर दशहरा की तैयारियों में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, जिसके साथ ही बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी की परिक्रमा के लिए रथ निर्माण की प्रक्रिया को औपचारिक रूप से शुरू करने की अनुमति प्राप्त हुई।
पारंपरिक विधि-विधान के साथ संपन्न हुई रस्म
बस्तर दशहरा पर्व के डेरी गड़ाई रस्म के तहत बिरिंगपाल गांव से विशेष रूप से लाई गई साल की पवित्र टहनियों को सिरहासार में खंभों के साथ विधि-विधानपूर्वक गाड़ा गया। यह प्रक्रिया पारंपरिक वाद्य यंत्रों की स्वर लहरियों के बीच मंत्रोच्चार और परम्परागत रीति-रिवाजों के साथ संपन्न हुई। पूजा विधि दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पूजा कृष्ण कुमार पाढ़ी के द्वारा संपन्न कराई गई। उनके साथ योगेश मंडन व मंदिर के सेवादार भी मौजूद थे
इस रस्म का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह बस्तर दशहरा के रथ निर्माण की शुरुआत का प्रतीक है। रस्म के दौरान सिरहासार में रथ निर्माण की अनुमति के लिए विशेष पूजा-अर्चना की गई।
हल्दी खेलने की परंपरा
डेरी गड़ाई रस्म के अवसर पर महिलाओं ने हल्दी खेलने की परंपरा को निभाया, जिसमें वे एक-दूसरे पर हल्दी छिड़ककर उत्सव की खुशी को साझा करती हैं। यह दृश्य स्थानीय संस्कृति की जीवंतता और सामुदायिक एकता को दर्शाता है।
पूरी तरह पारंपरिक तरीकाें से किया जाता है रथ निर्माण
डेरी गड़ाई रस्म के समापन के साथ ही रथ निर्माण का कार्य विधिवत शुरू हो गया है। इस कार्य को झाड़ उमरगांव और बेड़ा उमरगांव के संवरा जाति के कुशल कारीगर संपन्न करेंगे। ये कारीगर अपनी परंपरागत तकनीकों और औजारों का उपयोग करते हुए रथ को तैयार करेंगे, जो आराध्य देवी मां दंतेश्वरी की रथारूढ़ होने के साथ परिक्रमा के लिए उपयोग किया जाएगा।
रथ का निर्माण पूरी तरह से पारंपरिक तरीके से किया जाता है, जिसमें आधुनिक उपकरणों का उपयोग नहीं होता। यह प्रक्रिया न केवल कारीगरी का उत्कृष्ट नमूना है, बल्कि बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर को भी जीवित रखती है।
इनकी रही उपस्थिति
इस अवसर पर सांसद एवं बस्तर दशहरा समिति के अध्यक्ष महेश कश्यप, जगदलपुर विधायक किरण देव, महापौर संजय पांडे, बस्तर कमिश्नर डोमन सिंह, कलेक्टर हरिस एस, जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी प्रतीक जैन सहित क्षेत्र के जनप्रतिनिधिगण, बस्तर दशहरा पर्व के पारंपरिक सदस्य मांझी-चालकी, नाइक-पाइक, मेंबर-मेंबरिन और बड़ी संख्या में स्थानीय समुदाय शामिल हुए।
600 साल पुराना है बस्तर दशहरा का इतिहास
बस्तर में लगभग 600 वर्षों से दशहरा मनाया जा रहा है, वहीं 250 वर्षों से डेरी गढ़ाई के लिए साल की दो बल्लियां कचरापाटी परगना के कंकालीन जंगल से लाई जा रही है। जगदलपुर में यह परंपरा तत्कालीन बस्तर महाराज दलपत देव ने शुरू की थी। तब से बीरनपाल गांव के ग्रामीण यह काष्ठ पहुंचते आ रहे हैं।