बस्तर दशहरा 2025: पाट जात्रा से शुरू हुआ 75 दिन का अनूठा आदिवासी पर्व
विश्व का सबसे लंबी अवधि का सांस्कृतिक उत्सव, जानें इसकी खास परंपराएं
विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा का 75 दिवसीय महोत्सव आज पारंपरिक पाटजात्रा के साथ शुरू हो गया। यह दुनिया का सबसे लंबे समय तक चलने वाला सांस्कृतिक पर्व है जो छत्तीसगढ़ की आदिवासी परंपराओं की झलक प्रस्तुत करता है।
पाट जात्रा की पावन शुरुआत
गुरुवार को मां दंतेश्वरी मंदिर के सामने ग्राम बिलोरी से लाई गई प्रथम लकड़ी की पूजा के साथ पाठ जात्रा संपन्न हुई। यह वार्षिक रस्म हरियाली अमावस्या के दिन मनाई जाती है जो बस्तर दशहरा के आगाज का प्रतीक है।
महत्वपूर्ण तथ्य: बस्तर दशहरा इस वर्ष 24 जुलाई से 6 अक्टूबर 2025 तक (75 दिन) मनाया जाएगा, जो इसे विश्व के सबसे लंबे सांस्कृतिक उत्सवों में से एक बनाता है।
पारंपरिक रस्में और आयोजन
प्रातःकाल नगर गुड़ी के समक्ष पूजा स्थल पर बस्तर दशहरा समिति के सदस्यों - मांझी, चालकी, मेंबर-मेंबरी, पुजारी, गायता, पटेल, नाईक-पाईक और सेवादारों ने एकत्र होना शुरू कर दिया था। जिला प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी भी इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बने।
दोपहर 12 बजे ठुरलू खोटला और पारंपरिक औजारों की विधिवत पूजा-अर्चना की गई। इस अवसर पर बस्तर सांसद महेश कश्यप, विधायक किरण देव, महापौर संजय पांडेय, जिला कलेक्टर हरिश एस, अपर कलेक्टर सीपी बघेल, तहसीलदार, पार्षद संजय विश्वकर्मा, लक्ष्मण झा, संग्राम सिंह राणा, वेदप्रकाश पांडेय, मनोहर दत्त तिवारी, योगेंद्र पाण्डेय, अर्जुन श्रीवास्तव, छबिलेश्वर जोशी, राजीव नारंग,अनिल लुंकड़ सहित क्षेत्र के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
पाट जात्रा का महत्व
पाट जात्रा का गहरा सांस्कृतिक महत्व है। वन विभाग से अनुमति प्राप्त करने के बाद जंगल से लकड़ियां लाई जाती हैं जिनसे बस्तर दशहरा 2025: विश्व प्रसिद्ध 75 दिवसीय पर्व की पूरी जानकारी, रीति-रिवाज और समय सारणी रथ का निर्माण शुरू होता है। पहली लकड़ी सिंह द्वार पर रखी जाती है और हरियाली अमावस्या के दिन इसकी पूर्ण विधि-विधान से पूजा की जाती है।
यह रस्म बस्तर के लोगों द्वारा उन पेड़ों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का तरीका है जो पर्व के लिए अपना जीवन देते हैं। इस परंपरा का भावनात्मक और आध्यात्मिक महत्व इसे बस्तर दशहरा की तैयारियों का मूलभूत हिस्सा बनाता है।
यह रस्म बस्तरवासियों द्वारा प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अनूठा तरीका है। लकड़ियों के बिना यह पर्व अधूरा है, और इसीलिए इस आत्मदान को विशेष सम्मान दिया जाता है।