बस्तर दशहरा: 'बाहर रैनी' रस्म पूरी, राजा ने माड़िया समुदाय के साथ खाई 'नवाखानी'
जगदलपुर - शुक्रवार को विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व में 'बाहर रैनी' रस्म संपन्न हुई। इस दौरान पूर्व बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव ने सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए माड़िया आदिवासी समुदाय के लोगों के साथ 'नवाखानी' (नए चावल की खीर) खाई।
राजा और आदिवासी समुदाय के बीच सद्भाव का प्रतीक
इस अवसर पर सांसद एवं बस्तर दशहरा समिति के अध्यक्ष महेश कश्यप, महापौर संजय पांडे सहित जनप्रतिनिधिगण भी शामिल रहे। कमलचंद्र भंजदेव ने नवाखानी रस्म के साथ काछन देवी, मां दंतेश्वरी और मावली देवी की पूजा की। उन्होंने ग्रामीणों के साथ नए चावल से बना खीर का प्रसाद ग्रहण किया।
सभी अनुष्ठान संपन्न कराने के बाद विजय रथ की परिक्रमा की गई और मां दंतेश्वरी के छत्र को रथ पर आरूढ़ किया गया। कुम्हड़ाकोट से रथ पुन: सिरहासार स्थित मां दंतेश्वरी मंदिर की ओर रवाना हुआ। रात्रि आठ बजे तक रथ दंतेश्वरी मंदिर के सामने पहुंच चुका था। इस दौरान हजारों ग्रामीण मौजूद थे।
रथ चोरी और राजा का मान-मनौव्वल
बाहर रैनी रस्म से पहले गुरुवार की रात भीतर रैनी विधान हुआ था, जिसमें आठ चक्कों वाले विशाल रथ को माड़िया समुदाय के ग्रामीणों ने परंपरानुसार चुराकर कुम्हड़ाकोट जंगल में छिपा दिया था। यह रस्म उस ऐतिहासिक घटना को याद करती है जब एक बार ग्रामीणों ने राजा से असंतुष्ट होकर रथ चुरा लिया था।
शुक्रवार दोपहर राज परिवार के सदस्य, राजगुरू और मांझी-मुखिया पूरे लाव-लश्कर और गाजे-बाजे के साथ रथ को वापस लाने के लिए कुम्हड़ाकोट पहुँचे। यहाँ राजा द्वारा ग्रामीणों से रथ वापस करने के लिए मान-मनौव्वल किया गया।
नवाखानी से हुआ सद्भाव
माड़िया समुदाय ने रथ लौटाने के लिए शर्त रखी कि राजा उनके साथ नवाखानी खाएँगे। राज परिवार ने सहर्ष इस शर्त को स्वीकार किया। नए चावल से बने इस प्रसाद को सभी ने एक साथ ग्रहण किया, जो राज और आदिवासी समुदाय के बीच गहरे पारंपरिक संबंध और सद्भाव का प्रतीक है।
नवाखानी की रस्म पूरी होने के बाद माँ दंतेश्वरी का छत्र विधि-विधान के साथ रथ पर विराजित किया गया। माड़िया समुदाय के लोगों ने भारी उत्साह के बीच विजय रथ को जंगल से वापस खींचकर दंतेश्वरी मंदिर के सिंहद्वार तक पहुँचाया।
यातायात में उत्पन्न हुई अव्यवस्था
दशहरा के चलते पूरे शहर में यातायात जाम की स्थिति देखी गई। प्रमुख मार्गों पर भीड़ के चलते दुपहिया वाहनों से आवागमन में मुश्किल हो रही थी। जगह-जगह बांस के बैरियर लगाकर पुलिस कर्मियों के द्वारा लोगों को रूट बताया जा रहा था।
बाहर रैनी रस्म के समापन के साथ ही बस्तर दशहरा की रथ परिक्रमा पूरी हो गई। 75 दिनों तक चलने वाला यह अनोखा पर्व अब आगामी रस्मों - काछन जात्रा और कुटुम्ब जात्रा - के साथ अपने अंतिम चरण की ओर बढ़ रहा है।

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