गंगरेल बांध : पहले हरित क्रांति के लिए रहा योगदान, अब बना पर्यटन स्थल
मुख्य बिंदु:
- बांध निर्माण में उजाड़े गए 52 गांव
- 7 लाख एकड़ से अधिक क्षेत्र में सिंचाई
- पर्यटन विकास के नए प्रयास
- अंगारमोती मंदिर का धार्मिक महत्व
छत्तीसगढ़ के प्रमुख बांधों में एक गंगरेल (रविशंकर सागर जलाशय परियोजना) पहले से हरित क्रांति लाने में अपना योगदान निभा रहा है। अब पर्यटन स्थल के रूप में उभरकर सामने आया है। इस बांध के निर्माण के लिए 52 गांवों को उजाड़ा गया था।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:1978 में बना बांध
गंगरेल बांध निर्माण के लिए 1965 में सर्वे का काम शुरू किया गया। पहले इस बांध को सटियारा गांव के पास बनाने की योजना थी। मगर दो पहाड़ों के बीच होने के कारण गंगरेल गांव के पास बनाने की योजना तैयार की गई। गंगरेल बांध का शिलान्यास 5 मई 1972 को भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने किया था। 6 साल तक निर्माण कार्य चला। इस बीच 1978 में बांध बनकर तैयार हो गया।
गंगरेल बांध बनाने के लिए 52 गांव उजाड़े गए। जिसमें 16704 एकड़ जमीन डूबी है। प्रभावित गांवों में चंवर, बारगरी, कोड़ेगांव, मोंगरागहन, सिंघोला, मुड़पार, कोरलमा, कोकड़ी, तुमाबुर्जुग, कोलियारी, तिर्रा, चिखली, कोहका, माटेगहन, पटौद, हरफर, भैंसमुंडी, तांसी, तेलगुड़ा, मंचादुर, बरबांधा, सिलतरा, सटियारा समेत अन्य गांव शामिल रहे।
32 टीएमसी क्षमता, 7 लाख एकड़ क्षेत्र की सिंचाई
जल संसाधन विभाग के एसडीओ भाविन कुमार देवांगन ने बताया कि गंगरेल बांध में 32 टीएमसी पानी भरने की क्षमता है। 5 टीएमसी डेड स्टोरेज और 27 टीएमसी लाइव स्टोरेज के लिए होता है। एग्रीमेंट के मुताबिक हर साल 2 टीएमसी पानी भिलाई स्टील प्लांट को देते हैं। इसके अलावा धमतरी, बालोद, रायपुर, बलौदाबाजार जिले के 7 लाख एकड़ से अधिक एरिया में सिंचाई के लिए पानी दिया जाता है। रायपुर, धमतरी, भिलाई नगर क्षेत्र में भी पेयजल के लिए पानी देते हैं।
पर्यटकों को करता है आकर्षित
गंगरेल बांध में पर्यटकों के लिए वाटर स्पोर्ट की सुविधा है। पर्यटक बांध स्थल में बनाए गार्डन घूम सकते हैं। इसके अलावा आकर्षक बांध का नजारा देख सकते हैं। अंतिम छोर में धार्मिक स्थल अंगारमोती मंदिर है। यहां रूकने के लिए मोटल और अन्य सुविधा है। कलेक्टर अबिनाश मिश्रा बांध क्षेत्र को डेवलप के लिए विशेष रूचि दिखा रहे हैं।
जल संसाधन विभाग एसडीओ भाविन कुमार देवांगन के अनुसार गंगरेल बांध में पर्यटकों के लिए डाउन हिस्से में व्यू प्वाइंट बनना चाहिए। मरीन ड्राईव की तरह बनने से बांध का कटाव रूकेगा और मजबूती भी मिलेगी। व्यू प्वाइंट बनाने के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा गया है। इसमें 50 करोड़ रू. की लागत आएगी।
ऋषि अंगीरा की पुत्री हैं मां अंगारमोती
मां अंगारमोती मंदिर गंगरेल बांध के किनारे में स्थित है। इस देवी को 52 गांव की अधिषाष्ठी देवी मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि मां अंगारमोती ऋषि अंगीरा की पुत्री से है जो धरती से प्रगट हुई है। यहां नवरात्रि में भक्तों की भीड़ रहती है। दिपावली के बाद पहली शुक्रवार को यहां मड़ई का आयोजन होता है। जहां महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए मन्नत लेकर आती हंै।
जल्द ही तैयार हो जाएगा ईको टूरिज्म
गंगरेल बांध के डूबान क्षेत्र में ग्राम ठेमली आइलैंड है। जहां नाव व बोट के माध्यम से पहुंच सकते हैं। आइलैंड में जाने के लिए कलेक्टर अबिनाश मिश्रा रूचि दिखा रहे हैं। उन्होंने अधिकारियों के साथ टीम को निरीक्षण के लिए भेजा था। ईको टूरिज्म यहां जल्द तैयार हो जाएगा। इससे पर्यटक वहां तक पहुंचेगे। ग्रामीणों को रोजगार भी मिल सकेगा।
कलेक्टर अबिनाश मिश्रा ने कहा कि पर्यटकों को दिनभर घूमने की पूरी जगह मिल पाएगी। टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए डूबान क्षेत्र तक बोटिंग होगी। गंगरेल से रूद्री तक रास्ते को सुंदर बनाने के लिए दोनों ओर फूल के पौधे लगाकर क्यारी का रूप दिया जा रहा है। गंगरेल बांध क्षेत्र में साइंस पार्क बनाया गया है। जहां स्कूली बच्चों को भी ज्ञानवर्धक जानकारियां मिल पाएंगी।