श्रीगोंचा पर्व : रविवार को निकलेगी
भगवान श्री जगन्ना की रथ यात्रा, 15 दिवसीय अनसर काल के बाद हुआ नेत्रोत्सव पूजा विधान
जगदलपुर(समग्रविश्व)। गोंचा महापर्व में बस्तर के रियासत कालीन परंपराओं का
निवर्हन करते हुए 22 जून को चंदन जात्रा पूजा विधान संपन्न कराया गया था। उसके बाद भगवान
श्रीजगन्नाथ 15 दिवसीय अनसर काल में थे। शनिवार को 360 घर आरण्यक
ब्राह्मण समाज के ब्राह्मणों द्वारा नेत्रोत्सव पूजा विधान संपन्न किया गया। 7
जुलाई को श्रीगोंचा रथयात्रा पूजा विधान में भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा एवं
बलभद्र स्वामी के विग्रहों को श्रीजगन्नाथ मंदिर से रथारूढ़ कर गुडि़चा
मंदिर-सिरहासार भवन में सभी श्रृद्धालुओं के दर्शनार्थ विराजित होंगे।
बस्तर गोंचा महापर्व समिति के अध्यक्ष विवेक पांडे ने बताया कि शनिवार को
नेत्रोत्सव पूजा विधान संपन्न हुआ, 7 जुलाई को श्रीगोंचा रथयात्रा पूजा विधान
संपन्न किया जाएगा, जिसमें श्रीजगन्नाथ मंदिर के छ: खंडों में विराजित भगवान
जगन्नाथ, माता सुभद्रा व बलभद्र स्वामी के कुल बाईस विग्रहों को रथारूढ़ कर रथ
परिक्रमा मार्ग से होते हुए गुडि़चा मंदिर-सिरहासार भवन में विराजित होंगे। रियासत
कालीन श्रीजगन्नाथ मंदिर के छ: खंडों में जगन्नाथ जी की बड़े गुड़ी, मलकानाथ,
अमायत मंदिर, मरेठिया, भरतदेव तथा कालिकानाथ के नाम से जिसमें भगवान जगन्नाथ
स्वामी, बलभद्र व सुभद्रा देवी के 22 विग्रह का एक साथ एक ही मंदिर में स्थापित
होना, पूजित होना तथा इन विग्रहों काे रथों में रथारूढ़ कर रथयात्रा की शताब्दियों
पुरानी परंपरा है।
360घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष ईश्वर खंबारी ने बताया कि बस्तर
अंचल के जगदलपुर नगर में मनाये जाने वाले रियासतकालीन बस्तर गोंचा महापर्व पर एक
अलग ही छटा देखने को मिलती है। भगवान जगान्नाथ, सुभद्रा एवं बलभद्र के विग्रहों को
रथारूढ़ कर श्रीगोंचा रथयात्रा पूजा विधान 7 जुलाई को संपन्न किया जाएगा, इस दौरान
भगवान श्रीजगन्नाथ के सम्मान में तुपकी चलाने की परंपरा विश्व में कहीं और प्रचलित
नहीं है।