जैन श्रावकों ने जाना इंद्रियों को जीतकर कैसे भवसागर पार हो
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भजन संध्या में प्रस्तुति देने चेन्नई से आए कलाकार। |
जगदलपुर(समग्रविश्व)। स्थानीय धर्मनाथ जिनालय में चातुर्मास में निवास करने आई साध्वी श्री जी के आगमन से यहां का वातावरण भक्तिमय बना हुआ है। प्रतिदिन यहां प्रवचन, भजन, जप, तप, उपासना सहित विविध कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।
शनिवार को श्री आदिनाथ जैन ट्रस्ट चेन्नई से पधारे भजन कलाकार मोहन गोलछा एवं मनोज गोलछा ने उपस्थित श्रावकों को भजनों व दृष्टांतों के माध्यम से जीवन के विषय में प्रकाश डाला। उन्होंने क्या करोगे तब जब प्राण तन से निकले विषय को लेकर भजनों के माध्यम से मौजूद श्रावकों को जीवन से सबंधित महत्वपूर्ण जानकारी दी। उन्होंने कहा कि हम जो दैनिक क्रियाएं करते हैं वह मानव जीवन के लिए कितनी सार्थक है। कौन से कार्य कब, कितना और क्यो करना चाहिए और कितनी जरूरत है इस पर जानकारी दी। उन्होंने भजनों के माध्यम से संकेत दिया कि मनुष्य कैसे पांच इन्द्रीयों के 23 विषयों में इस भवसागर के प्रपंच में उलझा रहता है। वह कहां से आया है और उसे कहां जाना है उसे समझ ही नहीं आ पाता। इस भवसागर से कैसे पार पाया जा सकता है इस पर मोहन-मदन गोलछा (बंधु बेलड़ी) ने सरल भजनों के माध्यम से बताया। इस दौरान जैन समुदाय के सदस्य बड़ी संख्या में मौजूद थे और इस महत्वपूर्ण विषय को आत्मसात करने एकाग्रता पूर्वक बैठे थे।
चातुर्मास काल में हो रहा शत्रुंजय तप
आत्मा के आंतरिक दुष्कर्मों पर कैसे विजय प्राप्त
किया जाए। इस विषय को लेकर धर्मनाथ जिनालय में जैन साध्वियों के सानिध्य में
शत्रुंजय तप किया जा रहा है। तप के अंतर्गत दो अट्ठम(तेला), 7 छठ (बेला) एवं 9
ब्यासना करना होता है यह तप 29 दिनों तक किया जाएगा।
भजन संध्या का किया गया आयोजन
शुक्रवार को शाम 7:30 बजे से धर्मनाथ जिनालय में भजन
संध्या का आयोजन किया गया। कार्यक्रम रात्रि 11 बजे तक चला। यहां बड़ी संख्या में
जैन समुदाय के स्त्री-पुरूष व बच्चे पहुंचे थे। भजन कार्यक्रमों की प्रस्तुति देने
श्री आदिनाथ जैन ट्रस्ट चेन्नई से मोहन गोलछा एवं मनोज गोलछा उपस्थित हुए थे।
उन्होंने अपनी मनमोहक भजन प्रस्तुति से मौजूद लोगों को बांधे रखा।
परम पूज्या शशि प्रभाजी की प्रथम मासिक पुण्यतिथि पर किया स्मरण
गुरुवार को परम पूज्य शशि प्रभा जी म.सा. की प्रथम मासिक पुण्यतिथि थी। धर्मनाथ जिनालय में उनकी स्मृति में अष्टानविका महोत्सव चल रहा है। परम पूज्य श्रधान्विता श्रीजी म.सा. ने उपस्थित जैन धर्म वलंबियों के समक्ष गुरु स्तुति की। उन्होंने शशि प्रभा जी की प्रथम मासिक पुण्यतिथि पर कहा कि जिनकी आत्मा में धर्म घुटा हो तो उनका भी समाधि मरण हो सकता है। परम पूज्य गुरुवर्या शशि प्रभा जी में अपने आप ही संयम जीवन की भावना प्रकट हुई थी। उनके आसपास का वातावरण धार्मिक था और वे अल्पायु में ही गुरुकुल आ गई। वे सरलता और समता की ज्ञान मूर्ति थी। उनकी गुरुवारिया सज्जन श्रीजी म. सा. के विषय में बताते हुए उन्होंने बताया कि शारीरिक समस्याओं के चलते वे भ्रमण पर नहीं जा सकती थीं।। उस दौर में आवागमन के साधन के तौर पर डोली का प्रयोग किया जाता था। जिसे उन्होंने अस्वीकार करते हुए स्थिर जीवन स्वीकार किया और वे 30 वर्षों तक लगातार एक ही स्थल पर रही। परम पूज्य श्रद्धनविता श्रीजी मासा ने आगे बताया कि हमारे गुरु स्वाध्याय और जाप दो ही कार्यों में लीन रहते थे।