माड़मसिल्ली डेम: एशिया का पहला सायफन डेम और धमतरी की ऐतिहासिक धरोहर
धमतरी जिले के ऐतिहासिक धरोहरों में शामिल माड़मसिल्ली बांध एक अद्भुत इंजीनियरिंग चमत्कार है। सौ साल पहले अंग्रेजों द्वारा निर्मित, यह डेम एशिया में सायफन प्रणाली से बना पहला बांध होने का गौरव रखता है। माड़मसिल्ली डेम की खासियत यह है कि जब पानी लबालब भर जाता है तो इसके सभी 34 सायफन एक साथ स्वतः खुल जाते हैं। अब इस डेम को सिर्फ सिंचाई सुविधा के रूप में नहीं बल्कि पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जाना चाहिए ताकि स्थानीय आदिवासी समुदायों को आर्थिक अवसर मिल सके।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
छत्तीसगढ़ के धमतरी जिला मुख्यालय से लगभग 25 किमी दूर स्थित माड़मसिल्ली बांध की नींव 1914 में रखी गई थी। 9 साल के निर्माण कार्य के बाद 1923 में यह बांध तैयार हुआ। उस समय संसाधनों की कमी थी। 'मैडम सिल्ली' नामक एक अंग्रेज महिला ने रायपुर से धमतरी तक की यात्रा की और इस क्षेत्र में बांध निर्माण की योजना बनाई। इतिहासकारों के अनुसार, सायफन सिस्टम से बना यह बांध न केवल भारत बल्कि पूरे एशिया में प्रसिद्ध है।
तकनीकी विशेषताएं
जल संसाधन विभाग के एसडीओ आर एस साक्षी के अनुसार, माड़मसिल्ली बांध में 34 सायफन हैं जो केवल तभी खुलते हैं जब बांध में 100% पानी भर जाता है। यह बांध विज्ञान का अद्भुत नमूना है जो भौतिकी के सिद्धांतों पर काम करता है। पानी और हवा के दबाव से यह स्वतः नियंत्रित होता रहता है।
- निर्माण वर्ष: 1914-1923
- सायफन की संख्या: 34
- नदी: सिलियारी नदी
- विशेषता: एशिया का पहला सायफन डेम
पर्यटन संभावनाएं
माड़मसिल्ली बांध अब एक धरोहर बन चुका है जहां हर साल सैकड़ों पर्यटक आते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि पर्यटक मुख्यतः सप्ताहांत में आते हैं। धमतरी कलेक्टर अबिनाश मिश्रा ने बताया कि माड़मसिल्ली बांध क्षेत्र को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। यहां गार्डन और किचन शेड बनाया जा रहा है। बोटिंग सुविधा भी उपलब्ध कराई जाएगी।
धार्मिक महत्व
माड़मसिल्ली डेम का रास्ते में पड़ने वाली घाटी में स्थापित गढ़िया बाबा के साथ धार्मिक रिश्ता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि गढ़िया बाबा राहगीरों की रक्षा करते हैं। बांध निर्माण से पहले भी यह स्थान गढ़िया बाबा की छत्रछाया में था।
निष्कर्ष
माड़मसिल्ली डेम न केवल एक इंजीनियरिंग मार्वल है बल्कि धमतरी की ऐतिहासिक धरोहर भी है। इसके पर्यटन क्षमता को विकसित करने से स्थानीय आदिवासी समुदायों को रोजगार मिल सकता है। सौ साल से अधिक पुराना यह डेम आने वाले कई दशकों तक अपनी विरासत को संजोए रखेगा।
प्रेम मगेन्द्र, धमतरी