धरमू माहरा शासकीय कन्या पॉलिटेक्निक जनजातीय समाज का गौरवशाली अतीत विषय पर सांस्कृतिक कार्यक्रम किया गया

धरमू माहरा शासकीय कन्या पॉलिटेक्निक जनजातीय समाज का गौरवशाली अतीत विषय पर सांस्कृतिक कार्यक्रम किया गया

कार्यक्रम में उदबोधन देते मुख्य अतिथि।

जगदलपुर। धरमू माहरा शासकीय कन्या पॉलिटेक्निक में बुधवार को जनजातीय समाज के ऐतिहासिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक योगदान पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया। छात्राओं के द्वारा यहांआदिवासीनायकों को श्रद्धांजलि देते प्रस्तुति दी गई। वहीं अतिथयों ने जनजातीय समाज के गौरवशाली इतिहास पर अनेक जानकारियां अपने उद्बोधन में दी।

कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन और सरस्वती माँ की प्रतिमा पर माल्यार्पण से की गई। सभी अतिथियों काे गुलाब के पौधे और "बस्तर का गमछा" भेंट कर स्वागत किया गया। डॉ. नमिता अगरकर ने जनजातीय महोत्सव के दौरान पिछले डेढ़ महीने में संस्था में आयोजित कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला। इसके बाद प्राचार्य संजय कुमार त्रिवेदी ने अतिथियों का परिचय दिया और कार्यक्रम का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया।

कार्यक्रम में उदबोधन देते मुख्य अतिथि।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता अप्रतिम  झा (इतिहास अध्येता) थे, मुख्य अतिथि बलबीर सिंह कच्छ (निर्देशक आकाशवाणी) तथा विशेष अतिथि अभिजीत प्रताप सिंह (धर्मू माहरा के वंशज) एवं नारायण सिंह बघेल (सेवानिवृत्त आकाशवाणी उद्घोषक) थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्य संजय कुमार त्रिवेदी ने की।

नृत्य नाटिका के माध्यम से महान आदिवासी नायकों को दी श्रद्धांजलि

धर्मू माहरा शासकीय कन्या पॉलिटेक्निक जनजातीय समाज का गौरवशाली अतीत विषय पर सांस्कृतिक कार्यक्रम किया गया

कार्यक्रम के दौरान कॉलेज की छात्राओं ने नृत्य-नाटिका के माध्यम से रानी दुर्गावती, सिंगीदई, लीपा, रानी रोपुइलयनी, फूलो और झानो मुर्मू, गेंद सिंह, भील सिंह, वीर गोंडधुर और बिरसा मुंडा जैसे महान आदिवासी नायकों को श्रद्धांजलि दी। इसके अलावा, ईटीई की पांचवें सेमेस्टर की छात्रा प्रभांजलि राव ने लोक नृत्य प्रस्तुत किया। समारोह के समापन पर रंगोली, अल्पना एवं निबंध लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं को प्रमाणपत्र वितरित किए गए। शिक्षकों में श्रीमती विनीता जैन एवं श्रीमती स्वेता मौर्य को प्रतियोगिताओं के आयोजन के लिए, और जगदीश पटेल एवं श्रीमती प्रीति साओ को सांस्कृतिक कार्यक्रमों की तैयारी में योगदान के लिए सम्मानित किया गया। अंत में, धन्यवाद ज्ञापन और मंच संचालन डॉ. नमिता अगरकर के द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम का संयोजन डॉ. नमिता अगरकर एवं दीपेश कुमार गौतम द्वारा किया गया, जिसमें संस्थान के समस्त शिक्षक, कर्मचारी एवं छात्राएँ उपस्थित रहीं।

आदिवासी समाज की कला, संस्कृति, इतिहास पर वक्ताओं ने दी जानकारी

धर्मू माहरा शासकीय कन्या पॉलिटेक्निक जनजातीय समाज का गौरवशाली अतीत विषय पर सांस्कृतिक कार्यक्रम किया गया
कार्यक्रम में उदबोधन देते मुख्य अतिथि।

विनय सुना ने बस्तर के जनजातीय समाज के इतिहास और संघर्षों पर प्रकाश डालते कहा कि झाड़ा सिरहा का संघर्ष बस्तर के जनजातीय समाज की वीरता और उनके अधिकारों के लिए संघर्ष का प्रतीक था। भूमकाल विद्रोह बस्तर के आदिवासियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ा था। उन्होंने बस्तर की 13 प्रमुख आदिवासी समुदायों का भी उल्लेख किया। उपस्थित छात्राओं को जानकारी देते उन्होंने कहा कि पहले जगदलपुर को 'जगतुगुड़ा' कहा जाता था, जो समय के साथ बदलकर वर्तमान में जगदलपुर बन गया।

स्वप्निल ने अपने भाषण में बस्तर के आदिवासी समाज की सांस्कृतिक समृद्धि और ऐतिहासिक योगदान पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि बस्तर का जनजातीय समाज न केवल अपनी कला, संगीत और नृत्य के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि उनका साहित्य और लोककला भी अत्यधिक समृद्ध और विविधतापूर्ण है। उन्होंने बस्तर महाराजा के बारे में एक रोचक कहानी साझा की, जो आदिवासी समाज के प्रति अपनी श्रद्धा और सम्मान को दर्शाता है। स्वप्निल ने बताया कि जब राजा पुरी गए थे, तो उन्होंने वहां 10,000 सोने के सिक्के दान िकए थे। यह घटना आदिवासी समाज की अर्थव्यवस्था और सामाजिक स्थिति को दर्शाती है, जो उस समय बहुत समृद्ध थी।

वक्ता अभिजीत प्रताप सिंह ने धर्मू माहरा के 8वीं पीढ़ी के वंशज के रूप में उनके योगदान पर प्रकाश डाला, जिसमें लगभग 1600 एकड़ भूमि का दान बस्तर के राजा को करने की महत्वपूर्ण घटना बताई।

नारायण सिंह बघेल ने कार्यक्रम के आयोजन की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि बस्तर के जनजातीय समाज का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक अमूल्य योगदान रहा है, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। बघेल ने इस भ्रांति को दूर करने की बात कही कि आदिवासी समुदाय पिछड़ा हुआ है। उन्होंने स्पष्ट किया कि बस्तर के आदिवासी समुदाय न केवल सशक्त और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध हैं, बल्कि उनके साहस और संघर्ष की गाथाएं स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी अहम भूमिका को दर्शाती हैं। उन्होंने आदिवासी समाज के लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में दी गई कुर्बानियों का भी उल्लेख किया।

मुख्य अतिथि, बलबीर सिंह कच्छ ने अपनी मातृभाषा हलबी में एक प्रेरणादायक भाषण दिया, जिसमें उन्होंने बस्तर के जनजातीय समाज की गौरवशाली संस्कृति और इतिहास पर प्रकाश डाला। उन्होंने सरकार की इस पहल की सराहना की, जिससे जनजातीय समाज की विरासत को आम लोगों तक पहुँचाने का अवसर मिला। अपने संबोधन में कच्छ ने बस्तर के जनजातीय समाज की अद्भुत प्रतिभाओं का उल्लेख किया और कहा कि बस्तर के आदिवासी न केवल सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षक हैं बल्कि उनमें ऐसी विशेषताएँ हैं जिन पर शोध होना चाहिए। उन्होंने गर्वपूर्वक बताया कि वे स्वयं झाड़ा सिरहा की पाँचवीं पीढ़ी से हैं। झाड़ा सिरहा वनस्पतियों और औषधियों के ज्ञाता थे, जिसके कारण उन्हें 'झाड़ा सिरहा' कहा जाता था। कच्छ ने आदिवासी समाज की समृद्ध और अनूठी विवाह परंपराओं का भी वर्णन किया। उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदाय के विवाह संस्कार बेहद रंगीन और जीवंत होते हैं, जो उनकी सांस्कृतिक जड़ों की मजबूती को दर्शाते हैं। विवाह परंपराओं के बारे में अधिक जानकारी देने के लिए उन्होंने कुछ लोकगीत गाए, जिनसे जनजातीय समाज की संस्कृति की गहराई और उनका लोकजीवन झलकता है। कच्छ ने बस्तर के जनजातीय नायकों का उल्लेख किया, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने गुंडाधुर, गेंद सिंह और झाड़ा सिरहा जैसे वीर नायकों का उदाहरण देते हुए बताया कि किस प्रकार इन आदिवासी नायकों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया और अपने लोगों के अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा की। उन्होंने यह भी जोर दिया कि बस्तर के आदिवासी समुदाय की भूमिका भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी मुख्यधारा के नायकों की, और इसे हमेशा याद किया जाना चाहिए।

मुख्य वक्ता अप्रतिम झा ने अपने उद्बोधन में जनजातीय समाज के गौरवशाली अतीत और उनकी ऐतिहासिक भूमिका पर विस्तार से बात की। उन्होंने कार्यक्रम के विषय को संबोधित करते हुए कहा कि अंग्रेजों ने जानबूझकर आदिवासियों के बारे में एक झूठा प्रचार फैलाया कि वे खतरनाक और असभ्य थे, जबकि असल में अंग्रेज़ खुद आदिवासियों से भयभीत थे। झा ने स्पष्ट करते हुए कहा कि हमें आदिवासी समाज के प्रति अपनी धारणाओं को बदलने की जरूरत है और आदिवासियों को लेकर बनाई गई इस नकारात्मक छवि को चुनौती देना होगा। उन्होंने बस्तर के इतिहास की कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि आज हम रानी पद्मावती के जौहर की कहानी जानते हैं, लेकिन चमेली बाबी के जाैहर के बारे में कम ही जानते हैंचमेली बाबी का यह जोहर घटना 1313 में जगदलपुर से लगभग 30 किमी दूर स्थित चित्रकूट में हुई थी। यह तथ्य आदिवासी समाज के संघर्ष और बलिदान को दर्शाता है, जो स्वतंत्रता संग्राम के समान महत्वपूर्ण है। उन्होंने आदिवासियों के अद्भुत वास्तुशिल्प का भी उल्लेख किया, विशेष रूप से बस्तर के प्राचीन मंदिरों की। जिनमें 1300 साल पुरानी जटिल नक्काशी के उदाहरण हैं। आदिवासी समाज के पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण की सराहना करते हुए  झा ने कहा कि आदिवासी जंगलों और पेड़ों की रक्षा करते हैंउन्होंने बस्तर और छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की भूमिका पर भी चर्चा की, विशेष रूप से वीर गुंडाधूर और डेबरीधूर के बारे में बताया, जिन्होंने ब्रिटिशों के खिलाफ संघर्ष किया और अपने भूमि को बचाने के लिए शहादत दी। अंत में एक डॉक्यूमेंट्री दिखायी, जिसमें वीर गोंडधुर और देबरीधुर की शौर्य गाथाओं को दर्शाया गया।


basant dahiya

हमारा नाम बसंत दहिया है। हम पिछले 20 वर्षों से प्रिंट मीडिया में सक्रिय हैं। इस दौरान हमने अपने जिला व राजधानी रायपुर में प्रमुख बड़े समाचार पत्रों के साथ जुड़कर काम किया। अप्रेल 2024 से हमने अपना न्यूज पोर्टल समग्रविश्व की शुरूआत की है।

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